बाज लगभग 70 वर्ष जीता है, परंतु अपने जीवन के 40वें वर्ष में आते-आते उसे एक महत्वपूर्ण निर्णय लेना पड़ता है। उस अवस्था में उसके शरीर के तीन प्रमुख अंग निष्प्रभावी होने लगते हैं –
1. पंजे लम्बे और लचीले हो जाते है व शिकार पर पकड़ बनाने में अक्षम होने लगते हैं।
2. चोंच आगे की ओर मुड़ जाती है और भोजन निकालने में व्यवधान उत्पन्न करने लगती है।
3. पंख भारी हो जाते हैं और सीने से चिपकने के कारण पूरे खुल नहीं पाते हैं, उड़ानें सीमित कर देते हैं।
भोजन ढूंढ़ना, भोजन पकड़ना और भोजन खाना…. तीनों प्रक्रियाएं अपनी धार खोने लगती हैं।
उसके पास तीन ही विकल्प बचते हैं:-
या तो देह त्याग दे,
या अपनी प्रवृत्ति छोड़ गिद्ध की तरह त्यक्त भोजन पर निर्वाह करें…
या फिर स्वयं को पुनर्स्थापित करें,
आकाश के निर्द्वन्द्व एकाधिपति के रूप में।
(सीख:- हमें किसी भी परिस्थितियों में हार न मानते हुए जीवन के आखिरी क्षण तक डटकर मुकाबला करना चाहिए।)
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